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सचवा संकलन

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SACHVA SANKALAN क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला, ज़ख्मे दिल तेरी नज़रों से भी गहरा निकला। तोड़ कर देख लिया आईना ऐ दिल तूने, तेरी तस्वीर के सिवा और बता क्या निकला। जब भी कभी तुझको पुकारा मेरी तन्हाई ने, बू उड़ी फूल से, तस्वीर से साया निकला। तिश्नगी जम गई पत्थर  की तरह होठों पे, डूब कर तेरे दरिया से में प्यासा निकला। _________ बुला रहा है कौन मुझको चिलमनों के उस तरफ। मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है? Sachva sankalan ________ हज़ार बर्फ गिरे, लाख आंधियां निकलें। वो फूल खिल के रहेंगे, जो खिलने वाले हैं। ________ दूरी हुई तो उनसे और क़रीब हम हुए। अरे ये कैसे फाँसले थे जो बढ़ने से कम हुए॥ ________ बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय । आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय ।। अर्थात – तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है। उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है तो उसे हर कोई छूने लगता है।  ________ सगुनहि अगुनहि नहि कछु भेदा । गाबहि मुनि पुराण बुध भेदा। अगुन अरूप अलख अज जोई...