SACHVA SANKALAN
क्या भला मुझको परखने का नतीजा निकला,
ज़ख्मे दिल तेरी नज़रों से भी गहरा निकला।
तोड़ कर देख लिया आईना ऐ दिल तूने,
तेरी तस्वीर के सिवा और बता क्या निकला।
जब भी कभी तुझको पुकारा मेरी तन्हाई ने,
बू उड़ी फूल से, तस्वीर से साया निकला।
तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होठों पे,
डूब कर तेरे दरिया से में प्यासा निकला।
_________
बुला रहा है कौन मुझको चिलमनों के उस तरफ।
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है?
Sachva sankalan |
________
हज़ार बर्फ गिरे, लाख आंधियां निकलें।
वो फूल खिल के रहेंगे, जो खिलने वाले हैं।
________
दूरी हुई तो उनसे और क़रीब हम हुए।
अरे ये कैसे फाँसले थे जो बढ़ने से कम हुए॥
________
बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय ।
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय ।।
अर्थात – तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है। उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है तो उसे हर कोई छूने लगता है।
________
सगुनहि अगुनहि नहि कछु भेदा । गाबहि मुनि पुराण बुध भेदा।
अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बश सगुन सो होई।
अर्थात– सगुण और निर्गुण में कोई अंतर नही है। मुनि पुराण पन्डित बेद सब ऐसा कहते हैं। जेा निर्गुण निराकार अलख और अजन्मा है वही भक्तों के प्रेम के कारण सगुण हो जाता है।
________
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसंभवाः।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्।।
अर्थात— सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण – ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी जीवात्मा को शरीर में बाँधते हैं।
________
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान।।
अर्थात— जैसे कुए से पानी खींचने के लिए बर्तन से बाँधी हुई रस्सी कुए के किनारे पर रखे हुए पत्थर से बार-बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान बना देती है, ठीक उसी प्रकार किसी काम का बार-बार अभ्यास करने से मंद बुद्धि व्यक्ति भी उस काम का विशेषज्ञ हो जाता है।
________
सुभ अरू असुभ सलिल सब बहई।
सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई।।
समरथ कहु नहि दोश् गोसाईं।
रवि पावक सुरसरि की नाई।।
अर्थात—गंगा में पवित्र और अपवित्र सब प्रकार का जल बहता है परन्तु कोई भी गंगाजी को अपवित्र नही कहता। सूर्य आग और गंगा की तरह समर्थ ब्यक्ति को कोई दोष नही लगाता है।
_________
मैंने निभाया है हर रिश्ता ईमानदारी से।
यकीन मानिए कुछ नहीं मिलता इस वफ़ादारी से।।
_________
Comments
Post a Comment
Brij Sachdeva