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आत्म-छवि

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आत्म-छवि Written by Brij Sachdeva  आत्म-अवधारणा यानी आत्म-छवि का निर्माण बचपन और शुरुआती वयस्कता के दौरान होता है, जिसके दौरान यह अधिक लचीला होता है। जिस बच्चे को परिवार में सम्मान, देखभाल और प्यार मिलता है, उसमें एक अलग तरह की अकड़ और मन की शक्ति विकसित होती है, जबकि जिस बच्चे को इन सभी सुविधाओं से वंचित रखा जाता है, उसकी अकड़ और मन की शक्ति अलग तरह की होती है। दरअसल, जीवन के शुरुआती वर्षों में करीबी लोगों और आसपास की जीवन स्थितियों के कारण मन की शक्ति को जो नुकसान या वृद्धि होती है, वह लगभग अपरिवर्तनीय होती है। हालाँकि बाद के वर्षों में आत्म-अवधारणा को संशोधित करना संभव है, लेकिन यह अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है क्योंकि व्यक्ति पहले से ही अपने बारे में अपनी मान्यताओं को पुख्ता कर चुके होते हैं। विशेष रूप से आत्म-अवधारणा हमेशा वास्तविकता के साथ सटीक रूप से मेल नहीं खा सकती है। जब ऐसा होता है, तो इसे "संगत" माना जाता है, और जब ऐसा नहीं होता है, तो इसे "असंगत" माना जाता है। कभी-कभी जीवन की परिस्थितीयों की कुछ मजबूरियों के कारण, किसी व्यक्ति की आत्म-छवि इस हद तक ब...